कैंसर का इलाज
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भारत में हर घंटे ओरल कैंसर से 5 से ज्यादा लोगों की मौत होती है।
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सिर्फ तंबाकू खाने वालों ही नहीं, सामान्य लोगों को भी हो सकता है मुंह का कैंसर।
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जानें ओरल कैंसर के शुरुआती लक्षणों और बचाव के बारे में।
मुंह के कैंसर के रोगी सबसे ज्यादा भारत में पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि यहां बड़े पैमाने पर लोग गुटखा, पान मसाले और सुर्ती आदि का सेवन करते हैं। मगर यदि आप ये समझ रहे हैं कि सिर्फ तंबाकू खाने वालों को मुंह का कैंसर होता है, तो आप गलत हैं। मुंह का कैंसर यानी ओरल कैंसर किसी को भी हो सकता है। आमतौर पर इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) के कमजोर होने पर ये कैंसर हो जाता है।
मुंह का कैंसर होने पर शुरुआत में बहुत सामान्य संकेत दिखते हैं, जैसे- मुंह में गाल के अंदर की तरफ छाले होना, मुंह में छोटे-मोटे घाव होना, लंबे समय तक होठों का फटना और घाव का आसानी से न भरना आदि। आइए आपको बताते हैं मुंह के कैंसर के बारे में कुछ अन्य जरूरी बातें, जिससे आप इस बीमारी से समय रहते बच सकें।
भारत में कितनी तेजी से बढ़ रहा है ओरल कैंसर
कैंसर एक जानलेवा रोग है। भारत में पिछले एक दशक में कैंसर के मरीजों की संख्या और कैंसर से मरने वालों की संख्या दोनों बहुत तेजी से बढ़े हैं। जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च की मानें तो, आपको जानकर हैरानी होगी कि कैंसर के जितने मामले भारत में आते हैं, उनमें से 30 प्रतिशत सिर्फ मुंह के कैंसर (ओरल कैंसर) के मामले होते हैं। भारत में हर घंटे ओरल कैंसर से 5 से ज्यादा लोगों की मौत होती है। ये वो आंकड़ें हैं जो कैंसर के लिए अस्पतालों में रजिस्टर किए गए हैं। यानी वास्तविक आंकड़े इससे भी कहीं ज्यादा हो सकते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा मामले उत्तरप्रदेश से आते हैं और गांवों से आते हैं !
क्या हैं मुंह के कैंसर के शुरुआती लक्षण
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मुंह
के कैंसर की शुरुआत मुंह के अंदर सफेद छाले या छोटे-मोटे घाव से होती है।
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लंबे
समय तक अगर मुंह के भीतर सफेद धब्बा, घाव, छाला रहता है, तो आगे चलकर यह मुंह का कैंसर बन जाता है।
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मुंह
में दुर्गन्ध, आवाज बदलना, आवाज बैठ जाना, कुछ निगलने में तकलीफ होना, लार का अधिक या रक्त मिश्रित बहना जैसे लक्षण भी दिखते हैं।
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धूम्रपान
या नशा करने वाले को कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है। मुंह का कैंसर मुंह के भीतर जीभ, मसूड़ें, होंट कहीं भी हो सकता है।
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इसमें
घाव, सूजन, लाल रंग, खून निकलने, जलन, सन्नता, मुंह में दर्द आदि जैसे लक्षण देखने को मिलते है।
किन लोगों को होता है ज्यादा खतरा
आमतौर पर मुंह का कैंसर कमजोर इम्यूनिटी के कारण होता है इसलिए किसी को भी हो सकता है। इसके अलावा मुंह की ठीक से सफाई न करने से भी लंबे समय में मुंह के रोग और फिर कैंसर हो सकता है। मगर फिर भी इसका सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को होता है, जो तंबाकू या उससे जुड़ी चीजें जैसे- गुटखा, सुर्ती, जर्दा, पान, सुपारी, पान मसाला आदि खाते हैं।
इसके अलावा बीड़ी, सिगरेट, गांजा, शराब, आदि का सेवन भी मुंह के कैंसर का कारण बनता है।
मुंह के कैंसर से बचना है तो क्या करें
यदि मुंह, होंठों या जीभ पर किसी तरह का घाव या छाला बन जाए और शीघ्र ठीक नहीं हो रहा हो तो तुरन्त चिकित्सक को दिखाना चाहिए। यदि मुहं में होने वाले कैंसर का पता प्रथम चरण में ही चल जाए तो इसका निदान संभव है। इसमें देरी करने पर इसकी भयावहता बढ़ जाती है। इसके अलावा अगर कोई लक्षण नहीं भी दिखाई दें, फिर भी इन बातों का जरूर ध्यान रखें।
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धूम्रपान
एवं नशे का सेवन ना करें।
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दांतों
और मुंह की नियमित दो बार अच्छी तरह सफाई करें।
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दांतों
मसूड़ों व मुंह के भीतर कोई भी बदलाव नजर आए तो तत्काल डॉक्टर से जांच करायें।
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जंक
फूड, प्रोसेस्ड फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, डिब्बा बन्द चीजों का सेवन बन्द कर दें।
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ताजे
मौसमी फल, सब्जी, सलाद अवश्य खाएं। इन्हें अच्छे से धोकर उपयोग करें।
कोलन कैंसर
का इलाज
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कोलन कैंसर बड़ी आंत (कोलन) का कैंसर है
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जो आपके पाचन तंत्र का अंतिम भाग है
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पॉलीप्स आगे चलकर कोलोन कैंसर बन सकते हैं
कोलन कैंसर बड़ी आंत (कोलन) का कैंसर है, जो आपके पाचन तंत्र का अंतिम भाग है। कोलन कैंसर के ज्यादातर मामले एडेनोमेटस पॉलीप्स नामक कोशिकाओं के छोटे, गैर-कैंसर (सौम्य) समूहों से शुरू होते हैं। समय के साथ इनमें से कुछ पॉलीप्स आगे चलकर कोलोन कैंसर बन सकते हैं। पॉलीप्स (छोटी गांठ) के लक्षण कम या बिल्कुल भी नहीं दिखाई देते हैं। इस कारण से, डॉक्टर कैंसर की पहचान करने से पहले पॉलीप्स को पहचानने और हटाने से रोकने के लिए नियमित जांच की सलाह देते हैं।
मानव शरीर में कोलन कैंसर की पहचान होने पर इसको रोकने के लिए पॉलिप्स को खोज कर उन्हें हटाया जाता है। पॉलिप्स को हटाने के बाद कोलन कैंसर का जोखिम कम हो जाता है। कोलन पांच फीट लंबी मसक्यूलर ट्यूब होती है। कोलन कैंसर बड़ी आंत में या फिर रेक्टम (यह बड़ी आंत का अंतिम सिरा होता है) से शुरू हो सकता है। आम बोलचाल में कोलन-रेक्टल कैंसर को ही कोलन कैंसर कहते हैं। खान-पान और लाइफस्टाइल के कारण कोलन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलायें कोलन कैंसर का ज्यादा शिकार हो रही हैं। जो महिलाएं फाइबर वाली चीजें कम खाती हैं जिससे उनमें कोलन कैंसर का खतरा अधिक होता है। आइए हम आपको कोलन कैंसर के लक्षणों के बारे में बताते हैं।
कोलन कैंसर के लक्षण
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डायरिया कोलन कैंसर का प्रमुख लक्षण है।
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लंबे समय तक कॉन्सटिपेशन यानी कब्ज हो तो कोलन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
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स्टूल में खून आना।
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मल की रुकावट होना, पेट पूरी तरह से साफ न होना।
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बिना किसी वजन के शरीर में खून की कमी होना।
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अपच की शिकायत होना।
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लगातार वजन घटना।
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पेट के निचले हिस्से में लंबे समय से दर्द होना।
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हर वक्त थकान महसूस होना।
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लगातार उल्टी होना।
किसे हो सकता है कोलन कैंसर
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20 में से 1 आदमी को कोलन कैंसर होने का खतरा होता है।
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जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है उतना इस कैंसर के होने का खतरा बढ़ता जाता है।
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पोलिप्स और कोलन कैंसर के विकसित होने का खतरा प्रत्येक आदमी को होता है।
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यदि 50 वर्ष तक की आयु तक इसका पता चल जाये तो इलाज संभव है।
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यदि घर में किसी को कोलन कैंसर हुआ है तो इसके होने की आशंका बढ़ जाती है।
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धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन करने वालों को कोलन कैंसर होने का खतरा होता है।
कोलन कैंसर की पहचान कैसे करें
स्टूल में खून हो तो यह कोलन कैंसर की पहचान का सबसे सरल तरीका है। स्क्रीनिंग के जरिए डॉक्टर इसकी पहचान कर सकते हैं। कोलनस्कोपी और सिटी पैट स्कैन के जरिए कोलन कैंसर की पहचान की जाती है। कोलन कैंसर के ट्रीटमेंट का एकमात्र तरीका सर्जरी है। कीमोथेरपी से इसका साइज कम किया जाता है उसके बाद सर्जरी की जाती है। अगर कैंसर सेल लीवर तक फैल जाती हैं तो मरीज को रेडियो फ्रीक्वेंसी एबलेशन ट्रीटमेंट दिया जाता है। कोलन कैंसर का इलाज तब तक ही संभव है जब यह आंतों तक ही सीमित हो।
ज्यादातर मामलों में मरीज कोलन कैंसर के लक्षणों को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। इससे कैंसर फैलकर लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाता है, जो घातक होता है। इसलिए यदि आपको यह लक्षण दिखें तो चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।
थायरॉइड ग्रंथि हमारे गले में होती है, जो हमारे शरीर के लिए कुछ जरूरी हार्मोन्स को रिलीज करती है। महिलाओं में थायरॉइड कैंसर के मामले पुरुषों के मुकाबले 3 गुना ज्यादा पाए जाते हैं। आइए आपको बताते हैं क्या हैं थायरॉइड कैंसर के शुरुआती लक्षण और कैसे रोक सकते हैं इसे।
क्या हैं थायरॉइड कैंसर के लक्षण
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गले
में दर्द और सूजन होना
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गले
की निचले हिस्से को छूने पर दर्द महसूस होना
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गले
में गांठ का अनुभव होना
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मरीज
को कमजोरी का अनुभव होता है।
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पानी,
खाना और थूक निगलने में परेशानी होना
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शारीरिक
कार्य करने पर ज्यादा थकान होना
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पीरियड्स
के समय सामान्य से अधिक दर्द होता है और पीरियड्स जल्दी हो जाते हैं।
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थायरॉइड
कैंसर होने पर शरीर में दर्द का अनुभव होता है, खासकर मांसपेशियों व जोड़ो में दर्द होता है।
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थायरॉइड
कैंसर में बार-बार आंत संबंधी समस्या होने लगती है।
किन लोगों को होता है ज्यादा खतरा
आमतौर पर यह बीमारी 30 साल से अधिक उम्र के लोगों में होती है। युवाओं और बच्चों में इसके होने की संभावना कम पायी जाती हैं। इसके साथ ही यह रोग महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 3 गुना ज्यादा पाया जाता है। रेडिएशन थेरेपी के संपर्क में आने वाले लोगों में थायरॉइड कैंसर को विकसित करने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर आप किसी रोग के इलाज के लिए रेडिएशन थेरेपी लेते हैं, तो इसके खतरों के बारे में डॉक्टर से पूछ लें। इसके साथ ही यह रोग अनुवांशिक भी होता है इसलिए अगर किसी के परिवार में पहले से थायरॉइड कैंसर हो, तो उसे इसका खतरा होता है।
थायरॉइड कैंसर का क्या है इलाज
अल्ट्रासाउंड और थायरॉइड स्कैन के जरिए थायरॉइड कैंसर का पता तुरंत चल जाता है। पता लगते ही इसका तत्काल आपरेशन कर पूरी ग्रंथि को निकाल दिया जाता है। इसके बाद बिना देरी किए मरीज को रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरेपी (रेडिएशन की एक विधि) दी जाती है। थायरॉइड कैंसर में रेडियोथेरेपी एवं कीमोथरेपी विधि की जरूरत काफी कम होती है। हर थायरॉइड कैंसर मरीज को सर्जरी के बाद रेडियोएक्टिव थेरेपी की जरूरत होती है।
ऐसे लोग बरतें सावधानी
थायराइड कैंसर को रोकने के लिए कोई निश्चित तरीका नही है। यदि आपकी गर्दन के आस-पास रेडियोथेरेपी हुई है, विशेष रूप से जब आप बच्चे थे, तो थायराइड कैंसर को लेकर अपने डॉक्टर से नियमित जांच करवाते रहें। ऐसे लोग, जिनके परिवार में थायरायड कैंसर का इतिहास है उन्हें भी डॉक्टर से इस संदर्भ में जांच करवाते रहना चाहिए। अपने डॉक्टर की सलाह मानें और इस बीमारी से बचे रहें।
कैंसर एक जानलेवा और खतरनाक रोग है और इसके कई रूप होते हैं। आज के समय में ज्यादातर कैंसर का इलाज ढूंढ लिया गया है मगर इसका खर्च और इससे होने वाली परेशानी बहुत ज्यादा होती है इसलिए इससे बचाव जरूरी है। गलत जीवनशैली और खानपान आपकी किडनी को बुरी तरह प्रभावित करते हैं, जिसके कारण किडनी ठीक से खून फिल्टर नहीं कर पाती है। खून जब ठीक से फिल्टर नहीं होता तो खून में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ और जहरीले तत्व इकट्ठा होकर किडनी और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
किडनी या गुर्दे रीढ़ की हड्डी के दोनों सिरों पर बीन के आकार के दो अंग होते। शरीर के रक्त का बड़ा हिस्सा गुर्दों से होकर गुजरता है। गुर्दों में मौजूद लाखों नेफ्रोन नलिकाएं रक्त को छानकर शुद्ध करती हैं। आपकी रोजमर्रा की कुछ आदतें किडनी के कैंसर का कारण बनती हैं। इसलिए इन आदतों को तुरंत बदल दीजिए ताकि इस गंभीर रोग से बच सकें।
धूम्रपान की लत
अगर आप धूम्रपान करते हैं तो किडनी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान करने वालों में औसतन 50 प्रतिशत किडनी कैंसर होने का खतरा होता है। लेकिन अगर आपके धूम्रपान की लत बढ़ती जा रही है तो यह प्रतिशत बढ़ भी सकता है। जो लोग दिन भर में 20 सिगरेट पीते हैं उनमें किडनी कैंसर की संभावना धूम्रपान नहीं करने वालों से दुगनी होती है।
एल्कोहल का सेवन
एल्कोहल का सेवन करने वाले लोगों में किडनी कैंसर की समस्या हो सकती है। एल्कोहल की लत से किडनी की सेहत पर विपरीत असर होता है जिससे किडनी कैंसर के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। एल्कोहल ना पीने वाले लोगों में एल्कोहल पीने वाले लोगों की अपेक्षा किडनी कैंसर का खतरा कम होता है।
हाई ब्लड प्रेशर
हाई ब्लड प्रेशर से किडनी की समस्या भी हो सकती हैं क्योंकि किडनी हमारे शरीर से दूषित पदार्थों को बाहर निकालता है। हाई बल्ड प्रेशर के कारण किडनी की रक्त वाहिकाएं संकरी या मोटी हो जाती हैं। इस कारण से किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती है और खून में दूषित पदार्थ जमा होने लगते हैं और किडनी कैंसर के लक्षण दिखायी देने लगते हैं।
मोटापा कंट्रोल न करना
पैन इंडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में किडनी रोगों के 50 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में इसकी वजह मोटापा पाया गया है। कई लोग शरीर से मोटे नहीं होते हैं लेकिन उनका पेट निकला हुआ होता है। मोटापे की वजह से किडनी कैंसर का खतरा लगभग 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। क्रॉनिक किडनी डिजीज का सबसे बड़ा कारण यही पेट का मोटापा है। दरअसल किडनी की बीमारी के लक्षण उस वक्त उभरकर सामने आते हैं, जब किडनी 60 से 65 प्रतिशत डैमेज हो चुकी होती है। इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है।
डायबिटीज
डायबिटीज भी किडनी फेल होने का एक प्रमुख कारण है। डायबिटीज के 30 से 40 प्रतिशत मरीजों की किडनी खराब होती है। इनमें से 50 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें बहुत देर से इस बीमारी का पता चलता है और फिर उन्हें डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है। क्रॉनिक किडनी डिजीज किसी भी इलाज से पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती। अंतिम अवस्था में किडनी की बीमारियों का उपचार केवल डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण से ही संभव है।
पैंक्रियाज के कैंसर का
इलाज
आजकल पैंक्रियाज के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण अनियमित और अस्वस्थ खान-पान और मिलावट आदि है। आइये आपको बताते हैं कि क्यों मुश्किल है पैंक्रियाज के कैंसर का शुरुआत में पता लगाना और क्या हैं इसके लक्षण।
क्यों मुश्किल है पैंक्रियाज के कैंसर की पहचान
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दरअसल
पैंक्रियाज यानी अग्नाशय शरीर में बहुत अंदर स्थित होता है। पेट के काफी अंदर होने के कारण बाहर से देखने पर या छूकर इस कैंसर का पता नहीं लगाया जा सकता है।
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आमतौर
पर पैंक्रियाज कैंसर होने पर पेट में दर्द की समस्या होती है मगर ज्यादातर लोग साधारण दर्द से इसे अलग नहीं महसूस करते हैं इसलिए वे दर्द निवारक दवा से इस दर्द को रोक देते हैं।
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पैंक्रियाज
कैंसर का ट्यूमर या गांठ पेट के काफी अंदर होता है और कई अंगों से ढका होता है इसलिए आमतौर पर इसके कारण होने वाली सूजन या त्वचा पर किसी तरह का परिवर्तन शुरुआत में नहीं दिखाई पड़ता है।
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पैंक्रियाज
कैंसर के कुछ लक्षण अन्य बीमारियों से भी मिलते हैं इसलिए भी इस कैंसर की जांच मुश्किल हो जाती है जैसे- शरीर में सीरम बिलीरुबिन का असामान्य रूप से बढ़ना पैंक्रियाज कैंसर का लक्षण है मगर ये अन्य रोगों जैसे- पीलिया, हेपेटाइटिस, गॉल स्टोन आदि के कारण भी बढ़ सकता है।
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पेट
में एसिडिटी, कब्ज, दर्द, अपच आदि की समस्या बहुत साधारण होती है इसलिए इनके होने पर किसी का भी ध्यान पैंक्रियाटिक कैंसर की तरफ नहीं जाता है।
कहां होता है पैंक्रियाज
अग्नाशय मानव शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है, इसे पाचक ग्रंथि भी कहते हैं। पाचक ग्रंथि उदर के पीछे 6 इंच की लंबाई वाला अवयव होता है। मछली के आकार वाला अग्नाशय नर्म होता है। यह उदर में क्षितिज की समांतर दिशा में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैला होता है। इसका सिरा उदर की दायीं तरफ होता है, जहां उदर छोटी अंतड़ियों के पहले हिस्से से जुड़ा होता है।
किनको होता है पैंक्रियाज में कैंसर का ज्यादा खतरा
महिलाओं के मुकाबले पैनक्रीएटिक कैंसर के शिकार पुरुष ज्यादा होते हैं। पुरुषों के धूम्रपान करने के कारण इसके होने का ज्यादा खतरा रहता है। धूम्रपान करने वालों में अग्नाशय कैंसर के होने का खतरा दो से तीन गुने तक बढ़ जाता है। रेड मीट और चर्बी युक्त आहार का सेवन करने वालों को भी पैनक्रीएटिक कैंसर होने की आशंका बनी रहती है। कई अध्ययनों से यह भी साफ हुआ है कि फलों और सब्जियों के सेवन से इसके होने की आशंका कम होती है।
बहुत साधारण होते हैं अग्नाशय कैंसर के लक्षण
इसे 'साइलेंट कैंसर' इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसके लक्षण छिपे हुए होते हैं और आसानी से नजर नहीं आते। फिर भी अग्नाशय कैंसर के कुछ साधारण लक्षणों के बार-बार दिखने पर चिकित्सक से संपर्क किया जा सकता है। ये लक्षण निम्नलिखित हैं।
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पेट
के ऊपरी भाग में दर्द रहना।
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स्किन,
आंख और यूरिन का कलर पीला हो जाना।
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भूख
न लगना, जी मिचलाना और उल्टियां होना।
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कमजोरी
महसूस होना और वजन का घटना।
ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर
भारत में कैंसर के जितने मरीज आते हैं उनमें से लगभग 5% मामले 15 साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं।
आजकल कैंसर ऐसी बीमारी बन गई है जो शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। इसी के आधार पर अलग-अलग सौ से ज्यादा तरह के कैंसर अब तक पहचाने गए हैं। मगर आपको बता दें कि बच्चों में होने वाले ज्यादातर कैंसर रोगी एक ही तरह की बीमारी का शिकार होते हैं और वो है ब्लड कैंसर। यानि दुनियाभर में और भारत में बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर या ल्यूकीमिया तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों में इस बीमारी के लक्षण पहचानना थोड़ा मुश्किल है। आमतौर पर कैंसर जब किसी अंग में आधे से ज्यादा फैल चुका होता है, तब व्यक्ति को इसका पता चलता है।
क्या है ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर
ल्यूकीमिया एक तरह के ब्लड कैंसर की शुरुआती स्टेज है। इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है मगर तभी जब इस रोग के शुरुआत में ही इसका पता चल जाए। अगर ठीक समय से इलाज न किया जाए तो ये एक खतरनाक और जानलेवा रोग है। ल्यूकीमिया की सही समय पर जांच और चिकित्सा आपको कैंसर से बचा सकती है।
ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर के लक्षण
बच्चों में ल्यूकीमिया यानि ब्लड कैंसर के लक्षणों को पहचानना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन इन लक्षणों पर ध्यान देकर अगर आप तुरंत चिकित्सक से संपर्क करेंगे, तो शायद इस खतरनाक रोग से आप अपने बच्चों को बचा पाएंगे।
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बार-बार एक ही तरह का संक्रमण होना।
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बहुत
तेज बुखार होना।
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रोगी
का इम्यून सिस्टम कमजोर होना।
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हर
समय थकान और कमजोरी महसूस करना।
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एनीमिया
होना।
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नाक-मसूड़ों इत्यादि से खून बहने की शिकायत होना।
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प्लेटलेट्स
का गिरना।
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शरीर
के जोड़ों में दर्द होना।
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हड्डियों
में दर्द की शिकायत होना।
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शरीर
के विभिन्न हिस्सों में सूजन आना।
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शरीर
में जगह-जगह गांठों के होने का महसूस होना।
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लीवर
संबंधी समस्याएं होना।
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अकसर
सिरदर्द की शिकायत होना। या फिर माइग्रेन की शिकायत होना।
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पक्षाघात
यानी स्ट्रोक होना।
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दौरा
पड़ना या किसी चीज के होने का बार-बार भ्रम होना। यानी कई बार रोगी मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है।
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उल्टियां
आने का अहसास होना या असमय उल्टियां होना।
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त्वचा
में जगह-जगह रैशेज की शिकायत होना।
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ग्रंथियों/ग्लैंड्स का सूज जाना।
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अचानक
से बिना कारणों के असामान्य रूप से वजन का कम होना।
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जबड़ों
में सूजन आना या फिर रक्त का बहना।
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भूख
ना लगने की समस्या होना।
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यदि
चोट लगी है तो चोट का निशान पड़ जाना।
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किसी
घाव या जख्म के भरने में अधिक समय लगना।
तेजी से फैलता है ल्यूकिमिया यानि ब्लड कैंसर
हालांकि ल्यूकीमिया के आरंभिक लक्षणों में फ्लू और दूसरी कई गंभीर बीमारियां होती हैं लेकिन जब ल्यूकीमिया अधिक बढ़ने लगता है तो उपरलिखित तमाम समस्याएं होने लगती हैं। कई बार इन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है तो ल्यूकीमिया कैंसर कोशिकाएं यानी ये ट्यूमर कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में भी फैल जाती हैं। जिससे शरीर में असामान्य रूप से सूजन आने लगती हैं और शरीर बहुत भद्दा दिखाई पड़ने लगता हैं। यदि आप सही समय पर ल्यूकीमिया के लक्षणों की पहचान कर पाते हैं और उसका उपचार करवा लेते हैं तो आप ल्यूकीमिया के जोखिम से बाहर निकल सकते हैं।
खतरनाक रोग है ल्यूकीमिया
ल्यूकीमिया सेल्स सीधे तौर पर रक्त को बहुत प्रभावित करते हैं। हालांकि ल्यूकीमिया के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन जो लोग ल्यूकीमिया के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं और ल्यूकीमिया का समय पर इलाज नहीं करवाते उनका जीवन अधिकतम चार साल ही होता है। हालांकि यह भी मरीज की उम्र ,प्रतिरोधक क्षमता और ल्यूकीमिया के प्रकार पर निर्भर करता हैं। क्या आप जानते हैं ल्यूकीमिया यानी रक्त कैंसर का इलाज ल्यूकीमिया के प्रकारों के आधार पर ही होता है।
भारत में कैंसर के जितने मरीज आते हैं उनमें से लगभग 5% मामले 15 साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं।
आजकल कैंसर ऐसी बीमारी बन गई है जो शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। इसी के आधार पर अलग-अलग सौ से ज्यादा तरह के कैंसर अब तक पहचाने गए हैं। मगर आपको बता दें कि बच्चों में होने वाले ज्यादातर कैंसर रोगी एक ही तरह की बीमारी का शिकार होते हैं और वो है ब्लड कैंसर। यानि दुनियाभर में और भारत में बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर या ल्यूकीमिया तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों में इस बीमारी के लक्षण पहचानना थोड़ा मुश्किल है। आमतौर पर कैंसर जब किसी अंग में आधे से ज्यादा फैल चुका होता है, तब व्यक्ति को इसका पता चलता है।
क्या है ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर
ल्यूकीमिया एक तरह के ब्लड कैंसर की शुरुआती स्टेज है। इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है मगर तभी जब इस रोग के शुरुआत में ही इसका पता चल जाए। अगर ठीक समय से इलाज न किया जाए तो ये एक खतरनाक और जानलेवा रोग है। ल्यूकीमिया की सही समय पर जांच और चिकित्सा आपको कैंसर से बचा सकती है।
ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर के लक्षण
बच्चों में ल्यूकीमिया यानि ब्लड कैंसर के लक्षणों को पहचानना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन इन लक्षणों पर ध्यान देकर अगर आप तुरंत चिकित्सक से संपर्क करेंगे, तो शायद इस खतरनाक रोग से आप अपने बच्चों को बचा पाएंगे।
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बार-बार एक ही तरह का संक्रमण होना।
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बहुत
तेज बुखार होना।
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रोगी
का इम्यून सिस्टम कमजोर होना।
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हर
समय थकान और कमजोरी महसूस करना।
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एनीमिया
होना।
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नाक-मसूड़ों इत्यादि से खून बहने की शिकायत होना।
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प्लेटलेट्स
का गिरना।
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शरीर
के जोड़ों में दर्द होना।
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हड्डियों
में दर्द की शिकायत होना।
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शरीर
के विभिन्न हिस्सों में सूजन आना।
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शरीर
में जगह-जगह गांठों के होने का महसूस होना।
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लीवर
संबंधी समस्याएं होना।
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अकसर
सिरदर्द की शिकायत होना। या फिर माइग्रेन की शिकायत होना।
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पक्षाघात
यानी स्ट्रोक होना।
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दौरा
पड़ना या किसी चीज के होने का बार-बार भ्रम होना। यानी कई बार रोगी मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है।
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उल्टियां
आने का अहसास होना या असमय उल्टियां होना।
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त्वचा
में जगह-जगह रैशेज की शिकायत होना।
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ग्रंथियों/ग्लैंड्स का सूज जाना।
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अचानक
से बिना कारणों के असामान्य रूप से वजन का कम होना।
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जबड़ों
में सूजन आना या फिर रक्त का बहना।
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भूख
ना लगने की समस्या होना।
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यदि
चोट लगी है तो चोट का निशान पड़ जाना।
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किसी
घाव या जख्म के भरने में अधिक समय लगना।
तेजी से फैलता है ल्यूकिमिया यानि ब्लड कैंसर
हालांकि ल्यूकीमिया के आरंभिक लक्षणों में फ्लू और दूसरी कई गंभीर बीमारियां होती हैं लेकिन जब ल्यूकीमिया अधिक बढ़ने लगता है तो उपरलिखित तमाम समस्याएं होने लगती हैं। कई बार इन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है तो ल्यूकीमिया कैंसर कोशिकाएं यानी ये ट्यूमर कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में भी फैल जाती हैं। जिससे शरीर में असामान्य रूप से सूजन आने लगती हैं और शरीर बहुत भद्दा दिखाई पड़ने लगता हैं। यदि आप सही समय पर ल्यूकीमिया के लक्षणों की पहचान कर पाते हैं और उसका उपचार करवा लेते हैं तो आप ल्यूकीमिया के जोखिम से बाहर निकल सकते हैं।
खतरनाक रोग है ल्यूकीमिया
ल्यूकीमिया सेल्स सीधे तौर पर रक्त को बहुत प्रभावित करते हैं। हालांकि ल्यूकीमिया के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन जो लोग ल्यूकीमिया के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं और ल्यूकीमिया का समय पर इलाज नहीं करवाते उनका जीवन अधिकतम चार साल ही होता है। हालांकि यह भी मरीज की उम्र ,प्रतिरोधक क्षमता और ल्यूकीमिया के प्रकार पर निर्भर करता हैं। क्या आप जानते हैं ल्यूकीमिया यानी रक्त कैंसर का इलाज ल्यूकीमिया के प्रकारों के आधार पर ही होता है।
अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। श्वसन नली में सिकुड़न के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्याएं होने लगती हैं। लक्षणों के आधार अस्थमा के दो प्रकार होते हैं- बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, जो कि पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों को श्वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है जैसे कि सिगरेट का धुआं, पेंट वेपर्स आदि। आज विश्व अस्थमा दिवस पर हम आपको इस लेख में
अस्थमा से जुड़ी समस्याओं और उपचार के बारे में बताएंगे।